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किसान सरसों की इस किस्म की खेती कर बेहतरीन मुनाफा उठा सकते हैं

किसान सरसों की इस किस्म की खेती कर बेहतरीन मुनाफा उठा सकते हैं

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि नवगोल्ड किस्म के सरसों का उत्पादन आम सरसों के मुकाबले अच्छी होती है। जानें इसकी खेती के तरीके के बारे में। हमारे भारत देश में सरसों की खेती रबी के सीजन में की जाती है। इसकी खेती के लिए खेतों की बेहतरीन जुताई सहित सिंचाई की उत्तम व्यवस्था भी होनी चाहिए। बाजार में आजकल कई तरह की सरसों की किस्में पाई जाती हैं। ऐसी स्थिति में नवगोल्ड भी सरसों की एक विशेष किस्म की फसल हैं, जिसकी खेती कर आप कम परिश्रम में अधिक पैदावार कर सकते हैं।

नवगोल्ड किस्म के सरसों के उत्पादन हेतु तापमान

नवगोल्ड किस्म के सरसों की पैदावार 20 से 25 डिग्री सेल्सियस के तापमान में की जाती है। इसकी खेती समस्त प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है। परंतु, बलुई मृदा में इसकी बेहतरीन पैदावार होती है। इसके बीज की बुआई बीजोपचार करने के बाद ही करें, जिससे पैदावार काफी बेहतरीन होती है।

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नवगोल्ड किस्म के सरसों के उत्पादन हेतु सर्वप्रथम खेत को रोटावेटर के माध्यम से जोत लें। साथ ही, पाटा लगाकर खेत को एकसार करलें। साथ ही, इस बात का खास ख्याल रखें कि एकसार भूमि पर ही सरसों के पौधों का अच्छी तरह विकास हो पाता है।

नवगोल्ड किस्म की फसल में सिंचाई

नवगोल्ड किस्म के बीजों का निर्माण नवीन वैज्ञानिक विधि के माध्यम से किया जाता है। इस फसल को पूरी खेती की प्रक्रिया में बस एक बार ही सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। फसल में सिंचाई फूल आने के दौरान ही कर देनी चाहिए।

नवगोल्ड किस्म की खेती के लिए खाद और उर्वरक

नवगोल्ड किस्म के बीजों के लिए जैविक खाद का इस्तेमाल अच्छा माना जाता है। इसके उत्पादन के लिए गोबर के खाद का इस्तेमाल करना चाहिए। मृदा में नाइट्रोजन, पोटाश की मात्रा एवं फास्फोरस को संतुलन में रखना चाहिए।

सरसों की खेती के लिए खरपतवार का नियंत्रण

सरसों की खेती के लिए इसके खेत को समयानुसार निराई एवं गुड़ाई की जरूरत पड़ती है। बुवाई के 15 से 20 दिन उपरांत खेत में खर पतवार आने शुरू हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में आप खरपतवार नाशी पेंडामेथालिन 30 रसायन का छिड़काव मृदा में कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त यदि इसमें लगने वाले प्रमुख रोग सफ़ेद किट्ट, चूणिल, तुलासिता, आल्टरनेरिया और पत्ती झुलसा जैसे रोग लगते हैं, तो आप फसलों पर मेन्कोजेब का छिड़काव कर सकते हैं। नवगोल्ड किस्म के सरसों में सामान्य किस्म के मुकाबले अधिक तेल का उत्पादन होता है। साथ ही, इसकी खेती के लिए भी अधिक सिंचाई एवं परिश्रम की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
मटर की खेती से संबंधित अहम पहलुओं की विस्तृत जानकारी

मटर की खेती से संबंधित अहम पहलुओं की विस्तृत जानकारी

मटर की खेती सामान्य तौर पर सर्दी में होने वाली फसल है। मटर की खेती से एक अच्छा मुनाफा तो मिलता ही है। साथ ही, यह खेत की उर्वराशक्ति को भी बढ़ाता है। इसमें उपस्थित राइजोबियम जीवाणु भूमि को उपजाऊ बनाने में मदद करता है। अगर मटर की अगेती किस्मों की खेती की जाए तो ज्यादा उत्पादन के साथ भूरपूर मुनाफा भी प्राप्त किया जा सकता है। इसकी कच्ची फलियों का उपयोग सब्जी के रुप में उपयोग किया जाता है. यह स्वास्थ्य के लिए भी काफी फायदेमंद होती है. पकने के बाद इसकी सुखी फलियों से दाल बनाई जाती है.

मटर की खेती

मटर की खेती सब्जी फसल के लिए की जाती है। यह कम समयांतराल में ज्यादा पैदावार देने वाली फसल है, जिसे व्यापारिक दलहनी फसल भी कहा जाता है। मटर में राइजोबियम जीवाणु विघमान होता है, जो भूमि को उपजाऊ बनाने में मददगार होता है। इस वजह से
मटर की खेती भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए भी की जाती है। मटर के दानों को सुखाकर दीर्घकाल तक ताजा हरे के रूप में उपयोग किया जा सकता है। मटर में विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व जैसे कि विटामिन और आयरन आदि की पर्याप्त मात्रा मौजूद होती है। इसलिए मटर का सेवन करना मानव शरीर के लिए काफी फायदेमंद होता है। मटर को मुख्यतः सब्जी बनाकर खाने के लिए उपयोग में लाया जाता है। यह एक द्विबीजपत्री पौधा होता है, जिसकी लंबाई लगभग एक मीटर तक होती है। इसके पौधों पर दाने फलियों में निकलते हैं। भारत में मटर की खेती कच्चे के रूप में फलियों को बेचने तथा दानो को पकाकर बेचने के लिए की जाती है, ताकि किसान भाई ज्यादा मुनाफा उठा सकें। अगर आप भी मटर की खेती से अच्छी आमदनी करना चाहते है, तो इस लेख में हम आपको मटर की खेती कैसे करें और इसकी उन्नत प्रजातियों के बारे में बताऐंगे।

मटर उत्पादन के लिए उपयुक्त मृदा, जलवायु एवं तापमान

मटर की खेती किसी भी प्रकार की उपजाऊ मृदा में की जा सकती है। परंतु, गहरी दोमट मृदा में मटर की खेती कर ज्यादा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त क्षारीय गुण वाली भूमि को मटर की खेती के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है। इसकी खेती में भूमि का P.H. मान 6 से 7.5 बीच होना चाहिए। यह भी पढ़ें: मटर की खेती का उचित समय समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय जलवायु मटर की खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है। भारत में इसकी खेती रबी के मौसम में की जाती है। क्योंकि ठंडी जलवायु में इसके पौधे बेहतर ढ़ंग से वृद्धि करते हैं तथा सर्दियों में पड़ने वाले पाले को भी इसका पौधा सहजता से सह लेता है। मटर के पौधों को ज्यादा वर्षा की जरूरत नहीं पड़ती और ज्यादा गर्म जलवायु भी पौधों के लिए अनुकूल नहीं होती है। सामान्य तापमान में मटर के पौधे बेहतर ढ़ंग से अंकुरित होते हैं, किन्तु पौधों पर फलियों को बनने के लिए कम तापमान की जरूरत होती है। मटर का पौधा न्यूनतम 5 डिग्री और अधिकतम 25 डिग्री तापमान को सहन कर सकता है।

मटर की उन्नत प्रजातियां

आर्केल

आर्केल किस्म की मटर को तैयार होने में 55 से 60 दिन का वक्त लग जाता है। इसका पौधा अधिकतम डेढ़ फीट तक उगता है, जिसके बीज झुर्रीदार होते हैं। मटर की यह प्रजाति हरी फलियों और उत्पादन के लिए उगाई जाती है। इसकी एक फली में 6 से 8 दाने मिल जाते हैं।

लिंकन

लिंकन किस्म की मटर के पौधे कम लम्बाई वाले होते हैं, जो बीज रोपाई के 80 से 90 दिन उपरांत पैदावार देना शुरू कर देते हैं। मटर की इस किस्म में पौधों पर लगने वाली फलियाँ हरी और सिरे की ऊपरी सतह से मुड़ी हुई होती है। साथ ही, इसकी एक फली से 8 से 10 दाने प्राप्त हो जाते हैं। जो स्वाद में बेहद ही अधिक मीठे होते हैं। यह किस्म पहाड़ी क्षेत्रों में उगाने के लिए तैयार की गयी है। यह भी पढ़ें: सब्ज्यिों की रानी मटर की करें खेती

बोनविले

बोनविले मटर की यह किस्म बीज रोपाई के लगभग 60 से 70 दिन उपरांत पैदावार देना शुरू कर देती है। इसमें निकलने वाला पौधा आकार में सामान्य होता है, जिसमें हल्के हरे रंग की फलियों में गहरे हरे रंग के बीज निकलते हैं। यह बीज स्वाद में मीठे होते हैं। बोनविले प्रजाति के पौधे एक हेक्टेयर के खेत में तकरीबन 100 से 120 क्विंटल की उपज दे देते है, जिसके पके हुए दानो का उत्पादन लगभग 12 से 15 क्विंटल होता है।

मालवीय मटर – 2

मटर की यह प्रजाति पूर्वी मैदानों में ज्यादा पैदावार देने के लिए तैयार की गयी है। इस प्रजाति को तैयार होने में 120 से 130 दिन का वक्त लग जाता है। इसके पौधे सफेद फफूंद और रतुआ रोग रहित होते हैं, जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 25 से 30 क्विंटल के आसपास होता है।

पंजाब 89

पंजाब 89 प्रजाति में फलियां जोड़े के रूप में लगती हैं। मटर की यह किस्म 80 से 90 दिन बाद प्रथम तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है, जिसमें निकलने वाली फलियां गहरे रंग की होती हैं तथा इन फलियों में 55 फीसद दानों की मात्रा पाई जाती है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 60 क्विंटल का उत्पादन दे देती है।

पूसा प्रभात

मटर की यह एक उन्नत क़िस्म है, जो कम समय में उत्पादन देने के लिए तैयार की गई है | इस क़िस्म को विशेषकर भारत के उत्तर और पूर्वी राज्यों में उगाया जाता है। यह क़िस्म बीज रोपाई के 100 से 110 दिन पश्चात् कटाई के लिए तैयार हो जाती है, जो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 40 से 50 क्विंटल की पैदावार दे देती है। यह भी पढ़ें: तितली मटर (अपराजिता) के फूलों में छुपे सेहत के राज, ब्लू टी बनाने में मददगार, कमाई के अवसर अपार

पंत 157

यह एक संकर किस्म है, जिसे तैयार होने में 125 से 130 दिन का वक्त लग जाता है। मटर की इस प्रजाति में पौधों पर चूर्णी फफूंदी और फली छेदक रोग नहीं लगता है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 70 क्विंटल तक की पैदावार दे देती है।

वी एल 7

यह एक अगेती किस्म है, जिसके पौधे कम ठंड में सहजता से विकास करते हैं। इस किस्म के पौधे 100 से 120 दिन के समयांतराल में कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इसके पौधों में निकलने वाली फलियां हल्के हरे और दानों का रंग भी हल्का हरा ही पाया जाता है। इसके साथ पौधों पर चूर्णिल आसिता का असर देखने को नहीं मिलता है। इस किस्म के पौधे प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 70 से 80 क्विंटल की उपज दे देते हैं।

मटर उत्पादन के लिए खेत की तैयारी किस प्रकार करें

मटर उत्पादन करने के लिए भुरभुरी मृदा को उपयुक्त माना जाता है। इस वजह से खेत की मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए खेत की सबसे पहले गहरी जुताई कर दी जाती है। दरअसल, ऐसा करने से खेत में उपस्थित पुरानी फसल के अवशेष पूर्णतय नष्ट हो जाते हैं। खेत की जुताई के उपरांत उसे कुछ वक्त के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाता है, इससे खेत की मृदा में सही ढ़ंग से धूप लग जाती है। पहली जुताई के उपरांत खेत में 12 से 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर के मुताबिक देना पड़ता है।

मटर के पौधों की सिंचाई कब और कितनी करें

मटर के बीजों को नमी युक्त भूमि की आवश्यकता होती है, इसके लिए बीज रोपाई के शीघ्र उपरांत उसके पौधे की रोपाई कर दी जाती है। इसके बीज नम भूमि में बेहतर ढ़ंग से अंकुरित होते हैं। मटर के पौधों की पहली सिंचाई के पश्चात दूसरी सिंचाई को 15 से 20 दिन के समयांतराल में करना होता है। तो वहीं उसके उपरांत की सिंचाई 20 दिन के उपरांत की जाती है।

मटर के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण किस प्रकार करें

मटर के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक विधि का उपयोग किया जाता है। इसके लिए बीज रोपाई के उपरांत लिन्यूरान की समुचित मात्रा का छिड़काव खेत में करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त अगर आप प्राकृतिक विधि का उपयोग करना चाहते हैं, तो उसके लिए आपको बीज रोपाई के लगभग 25 दिन बाद पौधों की गुड़ाई कर खरपतवार निकालनी होती है। इसके पौधों को सिर्फ दो से तीन गुड़ाई की ही आवश्यकता होती है। साथ ही, हर एक गुड़ाई 15 दिन के समयांतराल में करनी होती है।
केंद्रीय स्तर से हरियाणा, पंजाब सहित इन राज्यों में भीगे गेहूं की होगी खरीद

केंद्रीय स्तर से हरियाणा, पंजाब सहित इन राज्यों में भीगे गेहूं की होगी खरीद

केंद्र सरकार की तरफ से गेहूं खरीदी चालू कर दी गई है। साथ ही, मार्च में हुई बारिश से अधिकांश किसानों का गेहूं भीग गया था। केंद्र सरकार द्वारा नवीन नियमोें के अंतर्गत 20 प्रतिशत तक भीगा गेहूं खरीदने की छूट दी प्रदान की गई है।

भारत के विभिन्न राज्यों में गेहूं की कटाई चालू हो चुकी है। कटाई के उपरांत मौसम को ध्यान में रखते हुए किसान शीघ्र ही मंडी में गेहूं बेचने के लिए जा रहे हैं। साथ ही, हाल में हुई बारिश और ओलावृष्टि से किसानों का काफी गेहूं भीग गया था।

किसान चिंतिति थे, कि भीगे गेहूं को किस प्रकार मंडी में विक्रय किया जाए। वर्तमान में उसी को लेके केंद्र सरकार की तरफ से कदम पहल की जा रही है। 

गेहूं खरीद को लेकर भीगे गेहूं के लिए जो नियम सख्त थे। अब केंद्र सरकार द्वारा उनमें काफी राहत दे दी गई है। किसानों को गेहूं बेचने के लिए ज्यादा दिक्कत नहीं होगी।

केंद्र के स्तर से कई राज्यों में भीगे गेंहू खरीदी पर राहत

मार्च माह में बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि से पंजाब, राजस्थान और हरियाणा में गेहूं की फसल को काफी मोटी हानि पहुंची थी। किसानों का गेहूं काफी ज्यादा भीग गया था। 

राज्य के किसान केंद्र सरकार से गेहूं खरीद में सहूलियत देने की मांग कर रहे थे। अब तीनों राज्यों के लिए केंद्र सरकार के स्तर से गेहूं खरीद हेतु बनाए गए नियमों में ढ़िलाई की गई है। इसका यह अर्थ है, कि किसान वर्षा से प्रभावित गेहूं को भी एमएसपी पर विक्रय कर पाएंगे।

कितने फीसद तक भीगा गेंहू खरीदेंगी गेंहू एजेंसियां

गेहूं खरीद के संदर्भ में केंद्र सरकार काफी चिंतित है। केंद्र सरकार का यह प्रयास रहा है, कि विगत वर्ष के सापेक्ष में किसी भी परिस्थिति में गेहूं की खरीद न हो पाए। 

इस वजह से सरकार का प्रयास है, कि जैसा भी गेहूं मंडियों में बिक्री के लिए पहुंच रहा है। उसको किसानों से खरीद लिया जाए। नवीन नियमों के अंतर्गत एफसीआई और बाकी एजेंसियों से कहा गया है, कि 20 प्रतिशत तक भीगा गेहूं एजेंसियों द्वारा खरीदा जा सकता है। 

यह भी पढ़ें: इस राज्य में केंद्र से आई टीम ने गुणवत्ता प्रभावित गेंहू का निरीक्षण किया

लाखों हेक्टेयर गेहूं की फसल हुई प्रभावित

एक आंकड़ें के मुताबिक, इस वर्ष मार्च में हुई वर्षा से भारत भर में 11 लाख हेक्टेयर में बोई गई गेहूं की फसल प्रभावित हुई है। इससे 1.82 लाख किसान प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुए हैं। 

फिलहाल, केंद्र सरकार द्वारा राजस्थान में 20 फीसद के भीगे गेहूं के अनुरूप खरीद के लिए कहा गया है। मध्य प्रदेश सरकार भी इसी नियम के आधार पर कार्य कर रही है। वहां भी काफी राहत प्रदान कर दी गई है।

विगत वर्ष की तुलना में गेंहू खरीदी का लक्ष्य कम

देश में गेहूं खरीद शुरू कर दी गई है। केंद्र सरकार द्वारा रबी मार्केर्टिंग सीजन 2023-24 में 341.50 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। जबकि विगत वर्ष यह लक्ष्य 444 लाख मिट्रिक टन था। 

इस बार गेहूं खरीद में अच्छी खासी गिरावट आ रही है। ऐसे में कम गेहूं खरीद से खुद केंद्र सरकार परेशान है। घरेलू खपत का प्रबंधन करना भी केंद्र सरकार के लिए चुनौती होगा।

जानें लहसुन की कीमत में कितना इजाफा हुआ है

जानें लहसुन की कीमत में कितना इजाफा हुआ है

मंडी समिति के सचिव मदन लाल गुर्जर ने बताया है, कि विगत एक सप्ताह से लहसुन के भाव में यह बढ़ोत्तरी हुई है। मंगलवार को लहसुन की कीमत में 300 रुपये प्रति क्विंटल की दर से वृद्धि दर्ज की गई। राजस्थान में लहसुन के भाव में काफी उछाल आया है। अब ऐसी स्थिति में मंडियों में लहसुन की आवक बढ़ गई है। अत्यधिक कीमत होने की वजह से बड़ी तादात में किसान लहसुन की उपज को विक्रय करने के लिए मंडी पहुंच रहे हैं। साथ ही, ऐसा भी सुनने को मिल रहा है, कि आगामी समय में कीमतों में और वृद्धि दर्ज होने की संभावना होती है। विशेष बात यह है, कि लहसुन के भाव में यह वृद्धि प्रतापगढ़ की मंडी में अधिक देखने को मिल रही है। इससे लहसुन उत्पादक किसान बेहद खुश दिखाई दे रहे हैं। लहसुन की खेती करना काफी मुनाफे का सौदा साबित होता है। लहसुन शरीर के लिए काफी फायदेमंद होता है। कई बार चिकित्सक भी मरीजों को लहसुन खाने की सलाह देते हैं। अधिकांश लोग सब्जी में लहसुन का तड़का दिए बिना सब्जी पसंद नहीं करते हैं।

लहसुन के भाव में 300 रुपए प्रति क्विंटल की दर से वृद्धि

मीडिया एजेंसियों के अनुसार, मंडी समिति के सचिव मदन लाल गुर्जर ने बताया है, कि विगत एक सप्ताह से लहसुन के भाव में यह वृद्धि सामने आ रही है। मंगलवार को लहसुन की कीमत में 300 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से वृद्धि दर्ज की गई है। वर्तमान में मंडी के अंदर एक क्विंटल लहसुन का भाव 13000 हो चुका है। यही कारण है, कि किसान अपनी फसल विक्रय करने हेतु बड़ी तादात में मंडी पहुँच रहे हैं। मंडी में प्रतिदिन लगभग 1500 बोरी लहसुन की आवक हो रही है। लहसुन व्यापारी नितिन चंडालिया का कहना है, कि आगामी दिनों में लहसुन की कीमत में और उछाल आएगा। साथ ही, यहां से लहसुन का निर्यात फिलहाल अन्य राज्यों में भी चालू हो चुका है। यह भी पढ़ें: मध्य प्रदेश के किसान लहसुन के गिरते दामों से परेशान, सरकार से लगाई गुहार

टमाटर के भाव में अच्छा-खासा इजाफा हुआ है

बतादें, कि राजस्थान में लहसुन के भाव में काफी इजाफा दर्ज हुआ है। महाराष्ट्र राज्य में टमाटर भी काफी महंगा हो चुका है। 30 रुपये किलो में मिलने वाले टमाटर की कीमत फिलहाल 60 रुपये तक पहुँच चुका है। बतादें, कि टमाटर उत्पादक काफी प्रसन्न हैं। वर्तमान, व्यापारी कृषकों से ज्यादा कीमत पर टमाटर खरीद रहे हैं। कृषकों को पहले एक किलो टमाटर के लिए 2 से 3 रुपये मिला करते थे। लेकिन, फिलहाल उनको काफी अच्छा भाव अर्जित हो रहा है।

राजस्थान के इस जनपद में हजारों हेक्टेयर में लहसुन की खेती

जानकारी के लिए बतादें, कि विगत वर्ष राजस्थान में लहसुन की उपज का समुचित भाव नहीं मिला था। सरकार द्वारा बाजार हस्तक्षेप योजना को मंजूरी मिलने के पश्चात भी उत्पादकों को लहसुन की समुचित कीमत नहीं मिल पाई थी। बतादें, कि किसान 14 रुपये किलो की दर से लहसुन का विक्रय करने हेतु विवश थे। बतादें, कि राजस्थान में किसान 1.31 लाख हेक्टेयर भूमि में लहसुन का उत्पादन करते है। बारा, हाड़ौती, बूंदी, झालावाड़ और कोटा इलाकों में किसान सर्वाधिक लहसुन की खेती करते हैं। इन इलाकों से 90 प्रतिशत लहसुन का उत्पादन होता है। इसी कड़ी में बारा जनपद में उत्पादकों ने 30 हजार 420 हेक्टेयर भूमि पर लहसुन का उत्पादन किया है।
कटहल की खेती की सम्पूर्ण जानकारी (Jackfruit Farming Information In Hindi)

कटहल की खेती की सम्पूर्ण जानकारी (Jackfruit Farming Information In Hindi)

किसान भाइयों बहुत पुराने जमाने से एक कहावत चली आ रही है कि कटहल की खेती कभी गरीब नहीं होने देती यानी इसकी खेती से किसान धनी बन जाते हैं। 

वैसे तो इसे भारतीय जंगली फल या सब्जी कहा जाता है। इसके अलावा कटहल को मीट का विकल्प कहा जाता है। इसके कारण बहुत से लोग इसे पसंद नहीं करते हैं। 

इस बात की जानकारी बहुत कम लोगों को है कि ये कटहल अनेक बीमारियों में फायदा करता है। किसान भाइयों के लिए कटहल की खेती अब लाभकारी हो गयी है। 

इसका कारण यह है कि कटहल के कई ऐसी भी किस्में आ गयीं हैं जिनमें साल के बारहों महीने फल लगते हैं। इससे किसानों को पूरे साल कटहल से आमदनी मिलती रहती है। 

इसलिये किसानों के लिए कटहल की खेती नकदी फसल की तरह बहुत ही लाभकारी है।

कटहल से मिलने वाले लाभ

  1. कटहल में विटामिन ए, सी, थाइमिन, कैल्शियम, राइबोफ्लेविन, आयरन, जिंक आदि पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं
  2. कटहल का पल्प का जूस हार्ट की बीमारियों में लाभदायक होता है
  3. कटहल की पोटैशियम की मात्रा अधिक पायी जाती है जिससे ब्लड प्रेशर कंट्रोल में रहता है
  4. रेशेदार सब्जी व फल होने के कारण कटहल से एनीमिया रोग में लाभ मिलता है
  5. कटहल की जड़ उबाल कर पीने से अस्थमा रोग में लाभ मिलता है
  6. थायरायड रोगियों के लिए भी कटहल काफी लाभकारी होता है
  7. कटहल से हड्डियों को मजबूत करता है आॅस्टियोपोरोसिस के रोगों से बचाता है
  8. कटहल में विटामिन ए और सी पाये जाने के कारण वायरल इंफेक्शन में लाभ मिलता है
  9. अल्सर, कब्ज व पाचन संबंधी रोगों में भी कटहल फायदेमंद साबित होता है
  10. कटहल में विटामिन ए पाये जाने के कारण आंखों की रोशनी भी बढ़ती है।
कटहल से मिलने वाले लाभ
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व्यावसायिक लाभ

कटहल के उत्पादन से व्यावसायिक लाभ भी मिलते हैं। कटहल को हरा व पक्का बेचा जा सकता है। इसके हरे कटहल की सब्जी बनायी जाती है। 

इसके अलावा इसका अचार, पापड़ व जूस भी बनाया जाता है। कटहल का फल तो लाभकारी है और इसकी जड़ भी कई तरह की दवाओं के काम आती है।

कटहल की खेती किस प्रकार से की जाती है

आइये जानते हैं कि बहुउपयोगी कटहल की खेती या बागवानी कैसे की जाती है। इसके लिए आवश्यक भूमि, जलवायु, खाद, सिंचाई आदि के बारे में विस्तार से जानते हैं।

मिट्टी एवं जलवायु

कटहल की खेती वैसे तो सभी प्रकार की जमीन में हो जाती है लेकिन दोमट और बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त बताई जाती है। कटहल की खेती पीएच मान 6.5 से 7.5 वाली मृदा में भी की जा सकती है।

रेतीली जमीन में भी इसकी खेती की जा सकती है। समुद्र तल से 1000 मीटर ऊंचाई वाली पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी खेती की जा सकती है। जलभराव वाली जमीन में इसकी खेती से परहेज किया जाता है क्योंकि जलजमाव से कटहल की जड़ें गल जातीं हैं तथा पौधा गिर जाता है। 

कटहल की खेती शुष्क एवं शीतोष्ण दोनों प्रकार की जलवायु में आसानी से की जा सकती है। कटहल की खेती अत्यधिक सर्दी बर्दाश्त नहीं कर पाती है। 

दक्षिण भारत में कटहल की खेती अधिक होती है। इसके अलावा असम को कटहल की खेती के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।

कटहल की उन्नत किस्में

कटहल की उन्नत किस्मों में खजवा, गुलाबी, रुद्राक्षी, सिंगापुरी, स्वर्ण मनोहर, स्वर्ण पूर्ति, नरेन्द्र देव कृषि विश्वाविद्यालय की एनजे-1, एनजे-2, एनजे-15 एनजे-3 व केरल कृषि विवि की मुत्तम वरक्का प्रमुख हैं।

कटहल की खेती किस प्रकार से की जाती है

कटहल की रोपाई कैसे करें

कृषक बंधुओं को खेत या बाग की भूमि की अच्छी तरह से जुताई करके और पाटा करके समतल और भुरभुरी बना लेना चाहिये। उसके बाद 10 मीटर लम्बाई चौड़ाई में एक मीटर लम्बाई चौड़ाई और गहराई के थाले बना लेने चाहिये। 

प्रत्येक थालों के हिसाब से 20 से 25 किलो गोबर की खाद व कम्पोस्ट तथा 250 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 500 पोटाश, 1 किलोग्राम नीम की खली तथा 10 ग्राम थाइमेट को डालकर मिट्टी में अच्छी तरह से मिला लें।

रोपाई दो तरह से होती है

कटहल की रोपाई दो तरह से होती है। पहला बीजू और दूसरा कलमी तरीका होता है। बीजू रोपाई करने के लिए 40 एमएम की काली पॉलीथिन में पके हुए फल का बीज गोबर की खाद और रेत मिलाकर दबा देना चाहिये। 

दूसरे कलम की पौध नर्सरी से लाकर थाले के बीच एक फूट लम्बे चौड़े और डेढ़ फुट का गहरा गड्ढा बनाकर उसमें लगा देना चाहिये।

रोपाई का समय

रोपाई का सबसे अच्छा समय वर्षाकाल माना जाता है। वर्षाकाल में रोपाई करने से पानी की व्यवस्था अलग से नहीं करनी होती है। कटहल के पौधों की रोपाई करने का सबसे उपयुक्त समय अगस्त सितम्बर का होता है।

सिंचाई प्रबंधन

वर्षा के समय पौधों की रोपाई करने के बाद सिंचाई का विशेष ध्यान रखन होगा। यदि वर्षा हो रही है तो कोई बात नहीं यदि वर्षा न होतो प्रत्येक सप्ताह में सिंचाई करते रहना चाहिये। 

सर्दी के मौसम में प्रत्येक 15 दिन में सिंचाई करना आवश्यक होता है। दो से तीन साल तक पौधों की सिंचाई का विशेष ध्यान रखन होता है। जब पेड़ में फूल आने की संभावना दिखे तब सिंचाई नहीं करनी चाहिये।

पौधों की विशेष निगरानी

कटहल का पौधा लगाने के एक साल बाद तक विशेष निगरानी करते रहना चाहिये। समय समय पर थाले की निराई गुड़ाई करते रहना चाहिये। 

अगस्त सितम्बर माह में खाद व उर्वरक का प्रबंधन करते रहना चाहिये। इसके अलावा समय-समय पर सिंचाई की भी देखभाल करते रहना चाहिये। इसके अलावा पौधों की बढ़वार के लिए समय-समय पर कांट छांट भी की जानी चाहिये।

जड़ से पांच-छह फीट तक तनों व शाखाओं को काट कर पेड़ को सीधा बढ़ने देना चाहिये। उसके बाद चार-पांच तनों को फैलने देना चाहिये। इस तरह से पेड़ का ढांचा अच्छी तरह से विकसित हो जाता है तो अधिक फल लगते हैं।

खाद व उर्वरक प्रबंधन

कटहल के पेड़ में प्रत्येक वर्ष फल आते हैं, इसलिये अच्छे उत्पादन के लिए पेड़ों को खाद व उर्वरक उचित समय पर पर्याप्त मात्रा में देना चाहिये। 

प्रत्येक पौधे को 20 से 25 किलोग्राम गोबर की खाद, 100 ग्राम यूरिया, 200 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 100 ग्राम पोटाश प्रतिवर्ष बरसात के समय देना चाहिये। 

जब पौधों की उम्र 10 वर्ष हो जाये तो खाद व उर्वरकों की मात्रा बढ़ा देनी चाहिये। उस समय प्रति पौधे के हिसाब से 80 से 100 किलो तक गोबर की खाद, एक किलोग्राम यूरिया, 2 किलो सिंगल सुपर फास्फेट तथा एक किलो पोटाश देना चाहिये।

कीट-रोग व रोकथाम

कटहल की खेती में अनेक प्रकार के कीट एवं रोग व कीटजनित रोग लगते हैं। उनकी रोकथाम करना जरूरी होता है। आइये जानते हैं कीट प्रबंधन किस तरह से किया जाये। 

1. माहू : कटहल में लगने वाला माहू कीट पत्तियों, टहनियों, फूलों व फलों का रस चूसते हैं। इससे पौधों की बढ़वार रुक जाती है। 

जैसे ही इस कीट का संकेत मिले। वैसे ही इमिडाक्लोप्रिट 1 मिलीलीटर को एक लीटर पानी में मिलाकर घोल बनाकर छिड़काव करें।

2. तना छेदक: इस कीट के नवजात कीड़े कटहल के मोटे तने व डालियों मे छेद बनाकर घुस जात हैं और अंदर ही अंदर पेड़ को नुकसान पहुंचाते हैं। इससे पेड़ सूखने लगता है तथा फसल पर विपरीत असर पड़ने लगता है। 

इसका पता लगते ही पेड़ में दिखने वाले छेद को अच्छी तरह से किसी पतले तार आदि से सफाई करना चाहिये फिर उसमें नुवाक्रान का तनाछेदक घोल 10 मिलीलीटर एक लीटर पेट्रोल या करोसिन में मिलाकर तेल की चार-पांच बूंद रुई में डालकर छेद को गीली चिकनी मिट्टी से बंद कर दें तो लाभ होगा। 

3. गुलाबी धब्बा : इस रोग से पत्तियों में नीचे की ओर से गुलाबी रंग का धब्बा बनने लगता है। इसकी रोकथाम के लिए कॉपर जनित फफूंदनाशी कॉपर आक्सीक्लोराइड या ब्लू कॉपर 3 मिली लीटर को प्रति लीटर पानी में मिलकार छिड़काव करना चाहिये। 

4. फल सड़न रोग: यह एक फफूंदी रोग। इस रोग के लगने के बाद कोमल फलों के डंठलों के पास धीरे-धीरे सड़ने लगता है। 

इसकी रोकथाम के लिए ब्लू कॉपर के 3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर घोल का छिड़काव तुरन्त करें और उसके 15 दिन बाद दुबारा छिड़काव करने लाभ मिलता है। 

यदि इसके बाद भी लाभ न मिले तो एक बार फिर छिड़काव कर देना चाहिये।

कटहल के फल की तुड़ाई कब और कैसे करें

कटहल का फल साधारण तौर पर फल लगने के 100 से 120 दिन के बाद तोड़ने के लायक हो जाता है। 

फिर भी जब इसका डंठल तथा डंठल से लगी पत्तियों का रंग बदल जाये यानी हरा से हल्का भूरा या पीला हो जाये और फल के कांटों का नुकीलापन कम हो जाये तब किसी तेज धार वाले चाकू से दस सेंटीमीटर डंठल के साथ तोड़ लेना चाहिये। 

यदि फल काफी ऊंचाई से तोड़ रहे हैं तो उसे रस्सी के सहारे नीचे उतारना चाहिये वरना जमीन पर गिर जाने से फल खराब हो सकता है।

पैदावार

कटहल के बीज से बोई गई खेती में फसल 7 से 8 वर्ष में फल आने लगते हैं और कलम से लगाई गई खेती में 5 से 6 साल में फल आने लगते हैं। 

यदि अच्छी तरह से देखभाल की जाये तो एक वृक्ष से 4 से 5 क्विंटल कटहल आसानी से पाया जा सकता है। यदि एक हेक्टेयर में 150 से 200 पौधे लगाये गये हैं तो इससे प्रतिवर्ष 3 से 4 लाख रुपये तक की आमदनी हो सकती है। 

दूसरे वर्ष इसकी फसल में कोई लागत नही लगती है और फसल इससे अधिक होती है।

सरकार टमाटर की तरह नही बढ़ने देगी प्याज के दाम

सरकार टमाटर की तरह नही बढ़ने देगी प्याज के दाम

आजकल टमाटर और अदरक के भाव बढ़ने से लोगों को लगता है, कि प्याज की कीमतों में भी इजाफा होगा। उपभोक्ता मामलों के सचिव रोहित कुमार सिंह ने रविवार को बताया है, कि सरकार ने 3 लाख टन प्याज खरीदा है, जो पिछले साल के बफर स्टॉक से 20 प्रतिशत ज्यादा है। 

प्याज की लाइफ बढ़ाने के लिए भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी) के साथ प्याज पर रेडिएशन का परीक्षण भी किया जा रहा है। गगनचुंबी टमाटर की कीमतों ने संपूर्ण भारत को हिलाकर रख दिया है। 

ऐसे में प्याज को लेकर अभी से तैयारी करनी चालू कर दी है, जिससे आने वाले दिनों में प्याज की कीमतों में कोई बदलाव देखने को नहीं मिले। उपभोक्ता मामलों के सचिव रोहित कुमार सिंह ने रविवार को बताया है, कि सरकार ने 3 लाख टन प्याज खरीदी है, जो कि विगत वर्ष के बफर स्टॉक से 20 प्रतिशत ज्यादा है। 

साथ ही, प्याज की निजी जिंदगी बढ़ाने के लिए भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी) के साथ प्याज पर रेडिएशन का परीक्षण भी किया जा रहा है। वित्त वर्ष 2022-23 में सरकार ने बफर स्टॉक के रूप में 2.51 लाख टन प्याज रखा था।

प्याज का 3 लाख टन का भरपूर भंडारण

अगर कम आपूर्ति वाले मौसम में कीमतें बेहद बढ़ जाती हैं, तो किसी भी आपात परिस्थिति को पूरा करने के लिए प्राइस स्टेबलाइजेशन फंड (पीएसएफ) के अंतर्गत बफर स्टॉक तैयार किया जाता है। 

रोहित सिंह का कहना है, कि त्योहारों के मौसम में किसी भी हालात से जूझने के लिए, सरकार ने इस वर्ष 3 लाख टन तक का मजबूत भंडारण विकसित किया है। प्याज को लेकर कोई परेशानी नहीं है। भरपूर भंडारण हेतु जो प्याज खरीदा गया है, वह वर्तमान में समाप्त हुए रबी सीजन का है। 

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खरीफ सीजन में प्याज की बुवाई

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि भारत के विभिन्न इलाकों में प्याज की बुवाई शुरू हो चुकी है। जिसकी फसल की आवक अक्टूबर माह में आनी चालू हो जाएगी। 

वर्तमान दौर में प्याज की खरीद हाल ही में निकले रबी सीजन से की जा रही है। वर्तमान में खरीफ प्याज की बिजाई चल रही है। बतादें, कि अक्टूबर में इसकी आवक चालू हो जाएगी। 

सचिव ने बताया है, कि सामान्य तौर पर खुदरा बाजारों में प्याज का भाव 20 दिनों अथवा उसके समीपवर्ती दबाव में रहती हैं। जब तक कि ताजा खरीफ फसल बाजार में नहीं आ जाती। परंतु, इस बार कोई दिक्कत नहीं होगी।

इस तरह बढ़ जाएगी प्याज की जीवनावधि

परमाणु ऊर्जा विभाग एवं भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के साथ मिलकर उपभोक्ता मामलों का मंत्रालय इस मध्य प्याज भंडारण के लिए एक तकनीक का परीक्षण कर रहा है। 

रोहित सिंह ने बताया है, कि पायलट बेस पर हम महाराष्ट्र के लासलगांव में कोबाल्ट-60 से गामा रेडिएशन के साथ 150 टन प्याज पर इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे प्याज की जीवनावधि बढ़ जाएगी। 

2022-23 में सरकार ने पीएसएफ के अंतर्गत रबी-2022 फसल से रिकॉर्ड 2.51 लाख मीट्रिक टन प्याज की खरीद की थी। वहीं, इसे सितंबर 2022 और जनवरी 2023 के दौरान प्रमुख उपभोक्ता केंद्रों में जारी किया था। 

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भारत में सबसे सस्ता प्याज मिलता है

भारत का 65 प्रतिशत प्याज उत्पादन अप्रैल-जून के दौरान काटी गई रबी प्याज से होता है। यह अक्टूबर-नवंबर में खरीफ फसल की कटाई होने तक उपभोक्ताओं की मांग को पूर्ण करता है। 

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 15 जुलाई को देश में सबसे सस्ता प्याज 10 रुपये प्रति किलोग्राम के साथ नीमच में मिल रहा था। साथ ही, नगालैंड के शेमेटर शहर में सबसे मंहगा प्याज 65 रुपये किलो पर मिल रहा है। भारत में प्याज का औसत भाव 26.79 रुपये प्रति किलोग्राम देखने को मिला था।

एक बार फिर प्याज की महंगाई ने आम जनता के निकाले आँशू

एक बार फिर प्याज की महंगाई ने आम जनता के निकाले आँशू

आजकल त्योहारों का सीजन चल रहा है। ऐसे में महंगाई को लेकर आम लोगों के लिए एक चिंतिंत करने वाला समाचार है। आपकी जानकारी के लिए बतादें कि आने वाली दिवाली से पूर्व ही प्याज की कीमतों में आग लग चुकी है। इसके भाव में 20 रुपये प्रति किलो के हिसाब से इजाफा दर्ज किया गया है। इससे आम जनता का की जेब काफी प्रभावित हो गई है। त्योहारों का समय आते ही महंगाई ने पुनः एक बार अपना रंग दिखाना चालू कर दिया है। इससे आम जनता का बजट डगमगा गया है। विशेष रूप से प्याज की कीमतों में आग लग चुकी है। बतादें कि 30 से 35 रुपये किलो बिकने वाला प्याज फिलहाल 45 रुपये के पार पहुंच चुका है। आंध्र प्रदेश में एक किलो प्याज का भाव 50 रुपये तक पहुँच चुका है। मतलब कि इसके भाव में 20 रुपये किलो तक की इजाफा दर्ज है। ऐसा कहा जा रहा है, कि आगामी दिनों में इसके भावों में और वृद्धि हो सकती है। ऐसी स्थिति में प्याज की कीमत ने एक बार पुनः लोगों की चिंता बढ़ा दी है।

प्याज 50 रुपए किलो बेचा जा रहा है

आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में प्याज 50 रुपये किलो विक्रय किया जा रहा है। वहीं, रायतु बाजार में प्याज की कीमत 40 रुपये प्रति किलो है। साथ ही, विशेषज्ञों ने बताया है, कि इस बार मानसून का आगमन विलंभ से हुआ था। ऐसी स्थिति में इसका प्रभाव प्याज की फसल के ऊपर भी देखने को मिला है। यही कारण है, कि बाजार में अब तक पर्याप्त मात्रा में प्याज की नवीन उपज नहीं आ पाई है। इसके चलते कीमतों में भी काफी इजाफा हुई है।

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सैकड़ों टन प्याज की आवक

टाइम्स ऑफ इंडिया के विश्लेषण के अनुसार, व्यापारियों ने बताया है, कि संपूर्ण आंध्र प्रदेश में प्याज की आपूर्ति रनूल और कर्नाटक के बेल्लारी से होती है। परंतु, इन दोनों स्थानों से प्याज की आपूर्ति आवश्यकता की तुलना में काफी कम हो रही है। इससे आंध्र प्रदेश में प्याज की बेहद समस्या हो गई। ऐसी स्थिति में यहां के व्यापारी महाराष्ट्र से प्याज खरीद रहे हैं। यही कारण है, कि लागत बढ़ने से प्याज की कीमत में बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है। जानकारी के लिए बतादें, कि आंध्र प्रदेश में प्रतिदिन 600 टन प्याज की आवक होती है।

प्याज की खेती में तकरीबन 120 दिन का विलंभ हुआ है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि सामान्य तौर पर इस बार बारिश विलंभ से होने की वजह प्याज की खेती में भी तकरीबन 120 दिन का विलंभ हुआ है। व्यापारियों की मानें तो नवंबर के प्रथम सप्ताह से प्याज की नवीन पैदावार मंडियों में आना शुरू हो जाएगी। इसके पश्चात प्याज के भावों में कुछ गिरावट भी देखने को मिल सकती है। हालांकि, इसके लिए लोगों को थोड़ी प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।
मुंबई में आज भी टमाटर की कीमतें सातवें आसमान पर हैं

मुंबई में आज भी टमाटर की कीमतें सातवें आसमान पर हैं

मुंबई में जून में, टमाटर की कीमतें 30 रुपये प्रति किलोग्राम के रेगुलर भाव से तकरीबन दोगुनी होकर 13 जून को 50-60 रुपये हो गईं। जून के समापन तक 100 रुपये को पार कर गईं।

मुंबई में टमाटर की कीमतें

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि कंज्यूमर अफेयर के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में टमाटर के मैक्सीमम प्राइस 200 रुपये से नीचे आ गए थे। साथ ही, बात यदि मुंबई की करें तो विभाग के मुताबिक टमाटर का खुदरा भाव 160 रुपये प्रति किलोग्राम था। परंतु, वीकेंड पर टमाटर के रिटेल भावों के सारे रिकॉर्ड तोड़ने की खबरें सामने आ रही हैं। जी हां, मुंबई में टमाटर का भाव 200 रुपये प्रति को पार करते हुए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। कीमतों में बढ़ोतरी के कारण खरीदारों की संख्या पर भी प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिला है। यह अब तक के सबसे निचले स्तर पर आ चुकी है, जिससे ग्राहकों की कमी की वजह से कुछ इलाकों में टमाटर की दुकानें बंद करनी पड़ीं।

टमाटर की कीमत विगत सात हफ्ते में 7 गुना तक बढ़ी है

मूसलाधार बारिश की वजह से कुल फसल की कमी एवं बड़े पैमाने पर क्षतिग्रस्त होने की वजह से बहुत सारी जरूरी सब्जियों के अतिरिक्त टमाटर की कीमतें जून से लगातार बढ़ रही हैं। जून में, टमाटर की कीमतें 30 रुपये प्रति किलोग्राम के रेगुलर भाव से तकरीबन दोगुनी होकर 13 जून को 50-60 रुपये हो गईं। जून के आखिर तक 100 रुपये को पार कर गईं। 3 जुलाई को इसने 160 रुपये का एक नया रिकॉर्ड बनाया, सब्जी विक्रेताओं ने भविष्यवाणी की कि रसोई का प्रमुख उत्पाद अंतिम जुलाई तक 200 रुपये की बाधा को तोड़ देगा, जो उसने किया है। ये भी पढ़े: सरकार अब 70 रुपए किलो बेचेगी टमाटर

किस वजह से टमाटर के भाव में आया उछाल

टीओआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एपीएमसी वाशी के डायरेक्टर शंकर पिंगले के मुताबिक टमाटर का थोक भाव 80 रुपये से 100 रुपये प्रति किलोग्राम के मध्य है। हालांकि, लोनावाला लैंडस्लाइड की घटना, उसके पश्चात ट्रैफिक जाम और डायवर्जन की वजह से वाशी मार्केट में प्रॉपर सप्लाई की बाधा खड़ी हो गई, जिसकी वजह से कीमतों में अस्थायी तौर पर इजाफा देखने को मिला। डायरेक्टर ने बताया है, कि कुछ दिनों के भीतर सप्लाई पुनः आरंभ हो जाएगी।

जानें भारत में कहाँ कहाँ टमाटर 200 से ऊपर है

बतादें, कि वाशी के एक और व्यापारी सचिन शितोले ने यह खुलासा किया है, कि टमाटर 110 से 120 रुपये प्रति किलोग्राम पर विक्रय किया जा रहा है। दादर बाजार में रोहित केसरवानी नाम के एक सब्जी विक्रेता ने कहा है, कि वहां थोक भाव 160 से 180 रुपये प्रति किलो है। अचंभित करने वाली बात यह है, कि उस मुख्य दिन पर वाशी बाजार में अच्छी गुणवत्ता वाले टमाटर मौजूद नहीं थे। माटुंगा, फोर बंगलोज, अंधेरी, मलाड, परेल, घाटकोपर, भायखला, खार मार्केट, पाली मार्केट, बांद्रा और दादर मार्केट में विभिन्न विक्रेताओं ने टमाटर की कीमतें 200 रुपये प्रति किलोग्राम तक बताईं। लेकिन, कुछ लोग 180 रुपये किलो बेच रहे थे।

बहुत सारे विक्रेताओं ने बंद की अपनी दुकान

रविवार को ग्राहकों की कमी के चलते फोर बंगलों और अंधेरी स्टेशन इलाके में टमाटर की दोनों दुकानें बिल्कुल बंद रहीं। टमाटर विक्रेताओं का कहना है, कि जब टमाटर की कीमतें गिरेंगी तब ही वो दुकान खोलेंगे। वैसे कुछ विक्रेताओं ने यह कहा है, कि त्योहारी सीजन जैसे कि रक्षाबंधन अथवा फिर जन्माष्टमी के दौरान दुकान खोलेंगे। बाकी और भी बहुत सारे दूसरे सब्जी दुकानदारों ने अपने भंडार को कम करने अथवा इसे प्रति दिन मात्र 3 किलोग्राम तक सीमित करने जैसे कदम उठाए गए हैं। विक्रेताओं में से एक ने हताशा व्यक्त की क्योंकि ज्यादातर ग्राहक सिर्फ और सिर्फ कीमतों के बारे में पूछ रहे हैं और बिना कुछ खरीदे वापिस लौट रहे हैं।

अगस्त महीने में खेती किसानी से संबंधित अहम कार्य जिनसे किसानों को होगा बेहतरीन फायदा

अगस्त महीने में खेती किसानी से संबंधित अहम कार्य जिनसे किसानों को होगा बेहतरीन फायदा

अगर आप भी आने वाले महीने यानी की अगस्त माह में अपनी फसल व पशुओं से अच्छा लाभ चाहते हैं, तो यह कार्य जरूर करें। किसानों को फसल से अच्छा मुनाफा पाने के लिए खेत पर सीजन के अनुसार ही फसलों की रोपाई करनी चाहिए। जिससे कि वह समय पर अच्छा लाभ और साथ ही अच्छी उत्पादन बढ़ा सके। इसी कड़ी में आज के इस लेख में हम आपके लिए अगस्त माह के कृषि कार्य की संपूर्ण जानकारी लेकर आए हैं। तो आइए इनके बारे में जानते हैं, सबसे पहले अगस्त माह की फसलों के विषय में जानने का प्रयास हैं।

अगस्त महीने में खेती किसानी से जुड़े संबंधित कार्य

धान, सोयाबीन, मूँगफली और सूरजमुखी से जुड़े कार्य

धान इस वक्त धान की रोपाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए, जिससे कि आप इससे अच्छी पैदावार ले सको। सोयाबीन की फसल अगस्त माह में किसानों को अपनी
सोयाबीन की फसल बुआई पर सबसे अधिक ध्यान रखने की आवश्यकता है। साथ ही, इनके रोग पर नियंत्रण करने के लिए कदम उठाने चाहिए। इसके लिए आप डाईमेथोएट 30 ई.सी. की एक लीटर मात्रा 700-800 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। मूंगफली की बात की जाए तो इस माह में मूंगफली के खेत में मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए। सूरजमुखी की ओर ध्यान दें तो अगस्त माह में किसानों को खेत में सूरजमुखी के पौधे लाइन से लगाने चाहिए। ध्यान रहे कि पौधों का फासला कम से कम 20 सेमी तक कर होनी चाहिए।

बाजरा, गोभी, बैगन, कद्दू और अगेती गाजर से जुड़े कार्य

बाजरा की बात की जाए तो इस दौरान बाजरे के कमजोर पौधों को खेत से निकालकर फैंक देना चाहिए। पौधों से पौधों की दूरी 10-15 सेंमी तक होनी चाहिए। अरहर के लिए अगस्त में अरहर फसल के खेत में निराई-गुड़ाई करके आपको खरपतवार को निकाल देना है। बतादें, कि रोग निवारण के उपायों को अपनाना चाहिए। गोभी की बात की जाए तो इस महीने में गोभी की नर्सरी की तैयार करनी चाहिए। अगस्त में अगेती गाजर की बुवाई चालू कर देनी चाहिए। कद्दू की बात करें तो इस समय आपको मचान बनाकर सब्जियों पर बेल चढ़ा देनी चाहिए। बैंगन की सब्जी में इस समय बीज उपचारित करके फोमोप्सिस अंगमारी तथा फल विगलन की रोकथाम करें।

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आम और नींबू से संबंधित कार्य

आम की बात करें तो अगस्त महीने में आपको आम के पौधों में लाल रतुआ एवं श्यामवर्ण (एन्थ्रोक्नोज ) की बीमारी पर कॉपर ऑक्सिक्लोराइड (0.3 प्रतिशत ) दवा का छिड़काव करना चाहिए। नींबू के लिए अगस्त महीने में नींबू में रस चूसने वाले कीड़े आने पर मेलाथियान (2 मिली/ लीटर पानी) का छिड़काव अवश्य करें। किसान भाई हमेशा पारंपरिक खेती करके किसान ज्यादा मुनाफा नहीं उठा सकते हैं।

अगस्त माह के दौरान पशुपालन से संबंधित में कार्य

अगस्त माह में पशुपालन से संबंधित बात करें तो इस महीने में पशुओं को सबसे ज्यादा मौसम से जुड़ी बीमारी का खतरा होता है। क्योंकि, अगस्त माह में भारत के विभिन्न राज्यों में बारिश का सिलसिला सुचारु रहता है। इससे बचने के लिए पशुपालक भाइयों को विभिन्न प्रकार के अहम कदम अवश्य उठाने चाहिए। इसके अतिरिक्त सुनील ने यह भी कहा है, कि पशुओं में छोटा रोग भी होने पर उसका अतिशीघ्र उपचार करें, जिससे कि वह फैल कर बड़ा रूप ना ले पाए।
किसान भाई किचन गार्डनिंग के माध्यम से सब्जियां उगाकर काफी खर्च से बच सकते हैं

किसान भाई किचन गार्डनिंग के माध्यम से सब्जियां उगाकर काफी खर्च से बच सकते हैं

किचन गार्डनिंग के माध्यम से आप भी घर में ही सब्जियों को उगा सकते हैं। यह सब्जी शुद्ध होंगी साथ ही बाजार से इन्हें खरीदने का झंझट भी समाप्त हो जाएगा। महंगाई के दौर में आप घर में ही सब्जियों की पैदावार कर सकते हैं, जिससे आप काफी रुपये बचा सकते हैं। ये सब्जियां घर में थोड़ी जगह में ही उग जाती हैं, जिसमें आपकी ज्यादा लागत भी नहीं आती है। विशेषज्ञों की मानें तो बालकनी में सब्जियां पैदा करने के दौरान आपको कुछ विशेष बातों का ख्याल रखना होता है, जिससे कि आप कम लागत में शानदार पैदावार अर्जित कर सकते हैं। आपको आसमान में पहुंचे टमाटर के भाव तो याद ही होंगे, इसी प्रकार की परेशानियों से संरक्षण के लिए आप किचन गार्डनिंग की मदद ले सकते हैं। इसमें आप टमाटर, मिर्च, भिंडी अथवा धनिया के अतिरिक्त बहुत सारी और सब्जियां भी उगा सकते हैं। इसके लिए मिट्टी से भरे कुछ गमले एवं धूप जरूरी है।

किसान भाई बड़े गमलों के अंदर ही रोपाई करें

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि अधिकांश सभी के घर की बालकनी में धूप आती है। ऐसी स्थिति में बालकनी में सब्जियां उगाना एक बेहतरीन विकल्प हो सकता है। इससे आपके घर में सदैव हरियाली बनी रहेगी। पैसे बचेंगे एवं शुद्ध सब्जियां आपको अपने घर में मिल जाएंगी। किचन गार्डनिंग के दौरान इस बात का विशेष ख्याल रखें कि सब्जियों के पौधों की रोपाई बड़े गमलों में की जाए, जिससे जड़ों को फैलने का पर्याप्त अवसर मिलता है।

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किसान भाई मौसम का विशेष ख्याल रखें

बतादें कि इसके अतिरिक्त बड़े गमले में पौधे मजबूत बनेंगे और पौधों में फल भी अच्छी मात्रा में आएंगे। विशेषज्ञ कहते हैं, कि किचन गार्डनिंग में भी मौसम का ध्यान रखना काफी आवश्यक है। बिना मौसम के लगाई गई सब्जियों से फल हांसिल कर पाना काफी मुश्किल होता है। बालकनी में खेती कर आप महीने के हजारों रुपये आसानी से बचा सकते हैं। आप स्वयं ही घर में टमाटर, भिन्डी, धनिया और मिर्च उगाकर उपयोग में ले सकते हैं। किसानों को रसोई बागवानी के विषय में जानकारी होनी काफी आवश्यक है। क्योंकि किचन गार्डनिंग के दौरान थोड़ा बहुत मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं। किसानों को बेहद आरंभिक तोर पर किचन गार्डनिंग का उपयोग करना चाहिए। मौसम की वजह से किसानों को टमाटर की काफी अधिक कीमत चुकानी पड़ी।
सॉफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी छोड़ बने सफल किसान की पीएम मोदी ने की सराहना

सॉफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी छोड़ बने सफल किसान की पीएम मोदी ने की सराहना

आज के समय में सरकार व किसान स्वयं अपनी आय को दोगुना करने के लिए विभिन्न कोशिशें कर रहे हैं। इसकी वजह से किसान फिलहाल परंपरागत खेती के साथ-साथ खेती की नवीन तकनीकों को अपनाने लगे हैं, परिणाम स्वरूप उन्हें अच्छा-खासा मुनाफा भी हांसिल हो रहा है। तेलंगाना के करीमनगर के किसान ने भी इसी प्रकार की मिश्रित खेती को अपनाकर अपनी आमदनी को लगभग दोगुना किया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी करीमनगर के किसान की इन कोशिशों और परिश्रम की सराहना की। साथ ही, कहा कि आप भी खेती में संभावनाओं का काफी सशक्त उदाहरण हैं। दरअसल, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 18 जनवरी 2023 को विकसित भारत संकल्प यात्रा के लाभार्थियों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से वार्तालाप की है। इस कार्यक्रम में भारत भर से विकसित भारत संकल्प यात्रा के हजारों लाभार्थी शम्मिलित हुए हैं। इस कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री, सांसद, विधायक और स्थानीय स्तर के प्रतिनिधि भी मौजूद रहे।

बीटेक स्नातक कृषक एम मल्लिकार्जुन रेड्डी की प्रतिवर्ष आय

प्रधानमंत्री मोदी से वार्तालाप करते हुए करीमनगर, तेलंगाना के किसान एम मल्लिकार्जुन रेड्डी ने बताया कि वह पशुपालन और बागवानी फसलों की खेती कर रहे हैं। कृषक रेड्डी बीटेक से स्नातक हैं और खेती से पहले वह एक सॉफ्टवेयर कंपनी में कार्य किया करते थे। किसान ने अपनी यात्रा के विषय में बताया कि शिक्षा ने उन्हें एक बेहतर किसान बनने में सहायता की है। वह एक एकीकृत पद्धति का अनुसरण कर रहे हैं, इसके अंतर्गत वह पशुपालन, बागवानी और प्राकृतिक खेती कर रहे हैं।

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बतादें, कि इस पद्धति का विशेष फायदा उनको होने वाली नियमित दैनिक आमदनी है। वह औषधीय खेती भी करते हैं और पांच स्त्रोतो से आमदनी भी हांसिल कर रहे हैं। पूर्व में वह पारंपरिक एकल पद्धति से खेती करने पर हर साल 6 लाख रुपये की आय करते थे। साथ ही, वर्तमान में एकीकृत पद्धति से वह हर साल 12 लाख रुपये की कमाई कर रहे हैं, जो उनकी विगत आमदनी से भी दोगुना है।

कृषक रेड्डी को उपराष्ट्रपति द्वारा भी सम्मानित किया जा चुका है

किसान रेड्डी को आईसीएआर समेत बहुत सारे संस्थाओं एवं पूर्व उपराष्ट्रपति श्री वेंकैया नायडू द्वारा भी सम्मानित व पुरुस्कृत किया जा चुका है। वह एकीकृत और प्राकृतिक खेती का प्रचार-प्रसार भी खूब कर रहे हैं। साथ ही, आसपास के क्षेत्रों में कृषकों को प्रशिक्षण भी प्रदान कर रहे हैं। उन्होंने, मृदा स्वास्थ्य कार्ड, किसान क्रेडिट कार्ड, ड्रिप सिंचाई सब्सिडी और फसल बीमा का फायदा उठाया है। प्रधानमंत्री ने उनसे केसीसी पर लिए गए ऋण पर अपनी ब्याज दर की जांच-परख करने के लिए कहा है। क्योंकि, केंद्र सरकार और राज्य सरकार ब्याज अनुदान प्रदान करती है।

कृषि कार्यों को बनता है सुगम और तेल खपत करता है कम 49 HP वाले इस ट्रैक्टर में है दम

कृषि कार्यों को बनता है सुगम और तेल खपत करता है कम 49 HP वाले इस ट्रैक्टर में है दम

खेती किसानी को आसान बनाने के लिए ट्रैक्टर अपनी अहम भूमिका निभाता है। इसलिए ट्रैक्टर को किसान का मित्र कहा जाता है। अगर आप भी कम ईंधन खपत करने वाला शक्तिशाली ट्रैक्टर खरीदना चाहते हैं, तो आपके लिए महिंद्रा 585 डीआई एक्सपी प्लस ट्रैक्टर एक शानदार विकल्प सिद्ध हो सकता है। क्योंकि, इस Mahindra 585 DI XP PLUS Tractor ट्रैक्टर में 2100 आरपीएम के साथ 49 HP पावर उत्पन्न करने वाला 3054 सीसी इंजन उपलब्ध किया जाता है, जिसे फ्यूल एफिशिएंट टेक्नोलॉजी के साथ तैयार किया गया है। Mahindra 585 DI XP PLUS Tractor: महिंद्रा कंपनी भारत में अपनी बेहतरीन परफॉर्मेंस वाले ट्रैक्टरों के लिए किसानों के मध्य अलग ही पहचान बनाए हुए है। भारत के ज्यादातर किसान महिंद्रा ट्रैक्टर्स का ही उपयोग करना पंसद करते हैं। 

महिंद्रा 585 डीआई एक्सपी प्लस की विशेषताएं क्या-क्या हैं ?

Mahindra 585 DI XP PLUS ट्रैक्टर में आपको 3054 सीसी क्षमता वाला 4 सिलेंडर में ELS Water Cooled इंजन प्रदान किया जाता है, जो 49 HP पावर के साथ 198 NM अधिकतम टॉर्क उत्पन्न करता है। इस महिंद्रा ट्रैक्टर में 3 Stage Oil Bath Type Pre Air Cleaner टाइप एयर फिल्टर आता है। कंपनी के इस ट्रैक्टर के इंजन से 2100 आरपीएम उत्पन्न होता है। साथ ही, इसकी अधिकतम पीटीओ पावर 44.9 HP है। महिंद्रा 585 डीआई एक्सपी प्लस की भार उठाने की क्षमता 1800 किलोग्राम है। Mahindra 585 DI XP PLUS महिंद्रा ट्रैक्टर की फॉरवर्ड स्पीड 30.0 kmph रखी गई है। यह 11.9 km h रिवर्स स्पीड के साथ आता है। एक्सपी प्लस सीरीज वाले इस ट्रैक्टर में आपको 50 लीटर क्षमता वाला ईंधन टैंक प्रदान किया जाता है।   

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MAHINDRA 475 DI ट्रैक्टर फीचर्स, स्पेसिफिकेशन और कीमत

महिंद्रा 585 डीआई एक्सपी प्लस के फीचर्स क्या-क्या हैं ?

महिंद्रा के इस एक्सपी प्लस ट्रैक्टर में आपको Manual / Dual Acting Power स्टीयरिंग देखने को मिल जाता है। बतादें, कि इस 49HP ट्रैक्टर में 8 Forward + 2 Reverse गियर वाला गियरबॉक्स उपलब्ध किया गया है। कंपनी का यह ट्रैक्टर आपको Single / Dual (Optional) क्लच के साथ दिखने को मिल जाता है। साथ ही, इसमें Full Constant Mesh टाइप ट्रांसमिशन प्रदान किया गया है। Mahindra 585 DI XP PLUS महिंद्रा के इस एक्सपी प्सस ट्रैक्टर में Dry Disc / Oil Immersed ब्रेक्स प्रदान किए गए हैं। महिंद्रा कंपनी के इस ट्रैक्टर में MRPTO टाइप पावर टेकऑप आती है, जो 540 आरपीएम उत्पन्न करती है। महिंद्रा 585 डीआई एक्सपी प्लस एक 2WD यानी टू व्हील ड्राइव ट्रैक्टर है। बतादें, कि इसमें 7.50 x 16  फ्रंट टायर एवं 14.9 x 28 रियर टायर प्रदान किए गए हैं।

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महिंद्रा 585 डीआई एक्सपी प्लस की कितनी कीमत है

भारत में Mahindra & Mahindra ने अपने इस Mahindra 585 DI XP PLUS महिंद्रा 585 डीआई एक्सपी प्लस ट्रैक्टर की एक्स शोरूम कीमत 7.00 लाख से 7.30 लाख रुपये निर्धारित की गई है। 585 डीआई एक्सपी प्लस की ऑन रोड़ कीमत समस्त राज्यों में लगने वाले आरटीओ रजिस्ट्रेशन तथा रोड टैक्स की वजह से भिन्न हो सकती है। महिंद्रा 585 डीआई एक्सपी प्लस ट्रैक्टर के साथ कंपनी 6 वर्ष की वारंटी प्रदान करती है।